electoral bond kya hota hai hindi mein samjhe: इलेक्टोरल बांड पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया? पूरी जानकारी

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By Rajesh Raj

electoral bond kya hota hai hindi mein samjhe: भारत में चुनावों में बहुत पैसा खर्च होता है। और दान से धन जुटाया जाता है। Electoral Bond राजनीतिक दलों को चंदा देने की एक प्रक्रिया है।

Electoral Bond क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड्स की अवधि सिर्फ पंद्रह दिनों की होती है। इसके दौरान, सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान दिया जा सकता है। Electoral Bond के जरिये केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं।

2017 में भारत सरकार ने Electoral Bond योजना की घोषणा की थी। 29 जनवरी, 2018 को सरकार ने इस योजना को कानून बनाया। सरल शब्दों में, इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को धन देने का साधन है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे SBI की चुनिंदा शाखाओं से कोई भी भारतवासी या कंपनी खरीद सकता है और चाहे किसी भी राजनीतिक दल को दे सकता है।

Electoral Bonds पर क्यों लगाई गई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को अनुच्छेद 19 (1)(A) का उल्लंघन करार दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को बंद कर दिया है। जनता को यह जानने का पूरा हक है कि किस सरकार को कितनी धनराशि मिली है। न्यायालय ने कहा कि SBI को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च, 2024 तक चुनाव आयोग को देना चाहिए।साथ ही, कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 अप्रैल, 2024 तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर जानकारी प्रकाशित करने के लिए आदेश दिया।

कब और कौन इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकते हैं?

जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में चुनाव बोर्ड जारी किए जाते हैं। कोई भी नागरिक, जिसके पास एक बैंक खाता है जिसमें केवाईसी की जानकारी उपलब्ध है, चुनाव बोनस खरीद सकता है। भुगतानकर्ता का नाम electoral bond में नहीं होता है। योजना के तहत सीबीआई की विशिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये या एक करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीद सकते हैं।

चुनावी बॉन्ड्स के 15 दिनों का अवधि सिर्फ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए है। इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनाव में कम से कम 1% वोट प्राप्त किए हों।

जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में योजना के तहत चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए दस दिन मिलते हैं। केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के वर्ष में दी गई 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी इन्हें जारी किया जा सकता है।

कैसे काम करते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?

इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग बहुत आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपये के मल्टीपल में प्रस्तुत किए जाते हैं, जैसे 1,000, 10,000, 100,000 और 1 करोड़ रुपये।

एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आप इसे पा सकते हैं। इस तरह के बॉन्ड को कोई भी डोनर खरीद सकता है जिसका KYC-COMPLIANT अकाउंट है, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। रिसीवर इसे कैश में बदल सकता है। इसका भुगतान पार्टी के वैरीफाइड खाते से किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी 15 दिन ही वैलिड रहते हैं।

किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?

बॉन्ड पूरे देश में किसी भी राजनीतिक दल को दिया जाता है, लेकिन उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम 1% या उससे अधिक वोट मिले हों। इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा भी ऐसी पंजीकृत पार्टी को मिलेगा। सरकार का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड चुनाव में चंदे के तौर पर दी गई राशि का रिकॉर्ड रखेगा और ब्लैक मनी को नियंत्रित करेगा। इससे चुनावी फंडिंग सुधरेगी।जवाबी हलफनामे में केंद्रीय सरकार ने कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।

कब और क्यों की गई थी शुरुआत

कब और क्यों किया गया था 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के माध्यम से संसद में प्रस्तुत किया था। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन 29 जनवरी 2018 को संसद से पास हुआ। राजनीतिक दलों को इससे चंदा मिलता है।

मामला सुप्रीम कोर्ट में कैसे पहुंचा?

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। इसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं, जो सीजेआई हैं। 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक, संविधान पीठ ने पक्ष और विपक्ष दोनों की दलीलों को सुना। 2 नवंबर को, तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर बहस का कारण क्या था?

इलेक्टोरल बॉन्ड पर चार लोगों ने याचिकाएं दी: कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR)। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से गुपचुप निवेश में पारदर्शिता कम होती है।

किस पार्टी को कितना चंदा मिला

रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2018 से जुलाई 2023 के बीच कई राजनीतिक दलों को 13,000 करोड़ रुपये भेजे गए हैं। . रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच 9,208 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे गए, जिसमें भाजपा ने कुल धन का 58% हासिल किया था।

जनवरी 2023 में चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों (भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) ने 2021 और 2022 में चुनावी बांड से कुल आय का 55.09 प्रतिशत या 1811.94 करोड़ रुपये इकट्ठा किया। 2021–2022 में चुनावी बांड के माध्यम से भाजपा ने दान का बड़ा हिस्सा प्राप्त किया, जिसके बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसका पीछा किया।

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